तुम्हें छोड़ना कितना मुश्किल : kavi sandeep dwivedi's love poetry
आज अकेले राह चला तो
दिल में बढ़ते भार से जाना
तुम्हें छोड़ना कितना मुश्किल
हाथ हमआर भूल चुके हैं
हाथों को बिन थामे चलना
दुनिया तो एकाकीपन है
दुनिया तेरे साथ टहलना
तेरी याद में राहें भटका
रहा नहीं जब अपने बस का
मन के सूनेपन से जाना
तुम्हें छोड़ना कितना मुश्किल
तुमसे मिलना समय रोकना
दोनों जैसे एक जैसा है
उम्र ने गिनती बदली लेकिन
जैसा था सब.. सब वैसा है
जब दिखा कहीं भी सिरा नहीं
पलकों के गीलेपन से जाना
तुम्हें छोड़ना कितना मुश्किल
गंगा के पानी के छींटे
तुम्हें जो मुझपर फेंके थे
पावन प्रेम लिए पावन जल
तन मन के रस्ते छेंके थे
घाट दूर तक नजर न आया
कुछ यूं डूबा मन तब ये जाना
तुम्हें छोड़ना कितना मुश्किल
- संदीप द्विवेदी
1 Comments
Jai ho
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