मैं कहूँ तो क्या कहूँ..

थी अधूरी सूचना 
या भाव तुम समझे नही.. 
क्यूंकि तुमने जो कहा 
हम उस तरह तो थे नही.. 
मैंने लिखने को तुम्हे 
था प्रेम का सागर चुना.. 
तुम उतरकर पढ़ न पाये
मैं कहूँ तो क्या कहूँ ...

मूक प्रस्तावों को क्या 
पत्र पर लिखना उचित है 
नेत्र जिनको गा रहे हों 
हर बार क्या कहना उचित है 
निःशब्द कथनों पर तुम्हारे 
निःशब्द 'हाँ' की थी प्रतीक्षा 
न प्रतिक्रिया तुम दे सके 
फिर मैं कहूँ तो क्या कहूँ ...
मैंने लिखने को तुम्हे .............

एक क्षण मिलना तुम्हारा 
ह्रदय मेरा तार देता 
ना कर सकोगी कल्पना 
जो प्रेम को विस्तार देता.. 
मैंने चलना नही छोड़ा 
कि कहीं पर तो तुम मिलोगी 
पर छिप गयी तुम राह  में 
फिर मैं कहूँ तो क्या कहूँ ...
मैंने लिखने को तुम्हें .............

ये वेदना सहनी न पड़ती 
कहीं पर यदि हार जाता.. 
पर जीत की आकांक्षा से 
रह गया तुमको रिझाता.. 
लाखों ह्रदय अर्पित मुझे थे 
ये था मेरा संक्षिप्त परिचय 
एक तुम्हीं को भा न पाये
मैं कहूँ तो क्या कहूँ ...
मैंने लिखने को तुम्हें .............
                       
                  - Kavi Sandeep Dwivedi

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10 Comments

  1. It's really heart touching...

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  2. बहुत भावुक कविता है

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  3. आप रीवा में कहाँ से हैं, मैं भी चाकघाट, रीवा से ही हूँ।

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  4. मित्र, तुम्हारे शब्दो में एक अलग ऊष्मा का प्रभाव है

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  5. आपकी हर कविता की तरह इस कविता में भी दिल को छू जाने वाला भावनात्मकल है।

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  6. Sir ye last paragraph bht alag h
    Aur jisne v apne pyaar ko haasil krne k liye jee jaan se Mehnat kiya h bs usi k liye h

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