Best Poem on Maharathi Karn |बैकुंठ धाम को त्याग कर्ण, बैकुंठ नाथ को जीत लिया। Kavi Sandeep Dwivedi
जब कर्ण की उठती है चर्चा
तब कृष्ण भी दोषी दिखते हैं
लेकिन यह बड़ी योजना थी
चलिए उस पक्ष से मिलते हैं
क्यों सारी शिक्षा व्यर्थ रही
न दान पुण्य ने साथ दिया
न्याय को लड़ते स्वयं कृष्ण
क्यों कर्ण दशा पर मौन लिया
एक चरित्र इस तरह रचना था
संदेश जगत में रखना था
सागर की ऊँची लहरों से
मानव को भूमि उतरना था
ईश्वर के विरुद्ध स्वकौशल से
एक वीर युद्ध यश जीत लिया।
यह मनुज शक्ति बतलाने को
हरि ने सब देकर खीच लिया
ईश्वर यूँ गलत नही होते
क्षण भर की कीर्ति नही ढोते
होता है कोई बड़ा ध्येय
जब लगते उनके कर छोटे
हां,कृष्ण ने हाथ नही थामा
पर कीर्ति से उसको सींच दिया
ईश्वर के विरुद्ध स्वकौशल से
एक वीर युद्ध यश जीत लिया।
आग आंच में अंतर है
जलने तपने में अंतर है
ईश्वर ने आंच लगायी थी
जो कर्ण प्रशंसा नभ पर है
जिसने भी ये तप झेला है
जीवन हारा भी जीत लिया
ईश्वर के विरुद्ध स्वकौशल से
राधेय युद्ध यश जीत लिया
जब उलझ रही थी धाराएं
तब कृष्ण कर्ण के गुण गाएं
स्वयं गढ़ी उस मिट्टी का
रन कौशल देख वो मुस्काएं
बैकुंठ धाम को त्याग के कर्ण
बैकुंठ नाथ को जीत लिया।
ईश्वर के विरुद्ध स्वकौशल से
राधेय युद्ध यश जीत लिया
कर्ण की बड़ी विवशता थी
कर्तव्य की अग्नि परीक्षा थी
युद्ध साथ वश लड़ना था
मन की न कोई इच्छा थी
जीत सका ना युद्ध भूमि पर
हृदय भूमि सब जीत लिया
ईश्वर के विरुद्ध स्वकौशल से
एक वीर युद्ध यश जीत लिया।
यह कविता कर्ण प्रशंसा थी
इसलिए कृष्ण की चर्चा थी
राधेय को कृष्ण मानते थे
उनकी कुछ बेहतर मंशा थी
इसलिए स्वयं नारायण ने
स्नेह का दामन खींच लिया
ईश्वर के विरुद्ध स्वकौशल से
राधेय युद्ध यश जीत लिया।
पत्थर पर गिरती जल धारा
जब घाव में घाव लगाती है
तब ही पत्थर की सुंदरता
क्या खूब निखर कर आती है
हम सबने आती विपदा को
इस तरह समझना सीख लि
ईश्वर को कुछ देना होगा ये
कर्ण चरित में सीख लिया
-Sandeep Dwivedi
धन्यवाद्
0 Comments