भले यह रण आखिरी हो, युग उसे अंकित रखेगा। Poem on Veer Abhimanyu |Sandeep Dwivedi
महाभारत की कथा में
पात्र था अद्भुत धरा में
बचपन अभी छूटा नही था
पर खड़ा वीरों की सभा में
भले यह रण आखिरी हो
जग मुझे अंकित रखेगा
सीख ये संसार ले ले
युद्ध भी आकार ले ले
हाथ छोटे ही सही
यदि हौसलों का भार ले ले
कौन योद्धा टिक सकेगा
कौन मर कर मर सकेगा
बिगुल वीरों के लिए है
युगों तक बजता रहेगा
भले यह रण आखिरी हो
जग मुझे अंकित रखेगा
क्या हृदय लेकर बढ़ा होगा
यह रण जब उसने चुना होगा
श्रेष्ठ योद्धाओं के सम्मुख
एक बाल योद्धा खड़ा होगा
द्रोण जैसे गुरु रहेंगे
गर्व मुझपर कर सकेंगे
निर्णय भले ही मृत्यु हो
पिता का गौरव बढ़ेगा
भले यह रण आखिरी हो
जग मुझे अंकित रखेगा
भेदकर अभेद्य द्वारे
पहुंचा नदी के उस किनारे
युद्ध के सारे सितारे
इससे बड़ा क्या पा सकेंगे
यह तीर उन तक जा सकेंगे
वाह क्या अवसर मिला है
अभिमन्यु अब अंकित रहेगा
भले यह रण आखिरी हो
जग मुझे अंकित रखेगा
लेकिन फिर
एक साथ सब बढ़ने लगे
नियम को ठगने लगे
यह क्या है कुछ समझा नही
ये वीर क्या करने लगे
आवाज़ दे किसको पुकारे
यहाँ ज्ञानियों ने ज्ञान हारे
यह कृत्य आपकी वीरता को
किस धरा में जगह देगा
भले यह रण आखिरी हो
जग मुझे अंकित रखेगा
गर्व से मन मुग्ध था
कि आप सबसे युद्ध था
मेरे बाण क्या ही बेध पाते
कौशल न इतना उच्च था
अभियान गौरव के लिए था
यह बाण वीरों के लिए था
मुझे छोड़ना मत महावीरों
मस्तक नही मेरा उठेगा
भले यह रण आखिरी हो
जग मुझे अंकित रखेगा
अभिमन्यु बस इतना ही था
नियति थी, मिटना ही था
डटा रण में जिस तरह
संसार तो झुकना ही था
मैं गया जय टीका लगाए
वो मिल के भी न जीत पाए
इस हार को मत हार कहना
इस हार को हर युग झुकेगा।
भले यह रण आखिरी हो
जग मुझे अंकित रखेगाl
-Sandeep Dwivedi
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