1 दीपक का पहला संदेश (lamp's first message)

एक बार दिये की लौ और जंगल में लगी आग की
अचानक मुलाक़ात हो गयी।
उस आग ने लौ पर हँसते हुए कहा-
देखो,तुम मेरी ही बहन हो...लेकिन मुझे देखो...
लोग मुझसे कितना डरते हैं..वो कहीं पास भी नही फटक सकते
और तुम?
तब दिये की लौ ने
आग की उठती लपटों को निहारा..
फिर मुस्कुरायी .. 
और बड़ी सहजता से बड़ा गहरा उत्तर दिया।
उस लौ ने कहा- 
हाँ,सच कह रही हो बहन।तुमसे लोग डरते तो हैं।

पर डरते तो लोग मुझसे भी हैं।
बस,डर का कारण अलग अलग है।
..तुमसे लोग डरते हैं कि
कहीं वो जल न जाएं
लेकिन मुझसे डरते हैं  कि कहीं मैं बुझ न जाऊँ।
बस इतना अंतर है.. 
और यह अंतर इसलिए बहन
क्योंकि.. 
तुम लपटें देती हो..मैं रौशनी।
तुम जलाती हो...मैं जगमगाती हूँ।।
तुम रास्ते मिटाती हो।..मैं रास्ता दिखाती हूँ।।
बस इतना अंतर है।।

कहानी  का भाव समझ गए होंगे आप।
आग दोनों ही थी पर इतने अंतर के साथ।
जब हम अपनी क्षमता में अहंकार नही...
नियंत्रण रखते हैं.. 
तो दिया बनते हैं।

दिये से यह संदेश हम और आप
आज लेकर ही निकलें कि
अपनी क्षमता का सार्थक उपयोग करें।
यह कीर्ति बढ़ाता है। शांति बढ़ाता है।
क्षमता में अहंकार नही..विनम्रता भरें।
अंधेरा नही.. प्रकाश फैलाएं।।

...तो यह था दीपक का पहला संदेश।।

दूसरा संदेश कल इसी समय पर, यहीं पर।।
हार्दिक शुभकामनाएं..

यह भी पढ़ें -

'यही सफलता साधो ' मेरी पहली पुस्तक का परिचय

0 Comments