रातों का ढल जाना तय है : Life Changing Poem :Kavi Sandeep Dwivedi
माना दिन का ढलना तय है
रात का व्यक्त ठहरना तय है
पर मन ये विश्वास जगाए
तुम रहना टीके मशालें लेकर
रातों का ढाल जानता तय है
दिन का फिर से आना तय है।।
नदिया चाहे दुनिया नापे
चाहे कितनी नाव डुबा दे
लहरें कितनी भी ऊंची हों
सागर में बह जाना तय है।
दिन का फिर से आना तय है
रातों का ढल जाना तय है।।
हार गए तो चिंता क्या है
इनको इतना गिनता क्या है
एक जीत के आगे इन सिक्कों का
बस ,बजते रह जाना तय है
रातों का ढल जाना तय है
दिन का फिर से आना तय है
दिन का फिर से आना तय है
रातों का ढल जाना तय है
दिन का फिर से आना तय है।।
हवा जुटाए लाख बवंडर
भले कंपाए धरती अम्बर
चाहे जितना भी दम भर ले
चल चल कर थक जाना तय है
दिन का फिर से आना तय है
रातों का ढाल जाना तय है
मन इतना भी डरा नहीं है
कि व्यक्त के आगे खड़ा नहीं है
मुश्किल आँख दिखती है पर
अंत उसी का आना तय है
दिन का फिर से आना तय है
रातों का ढल जाना तय है ।।
- संदीप द्विवेदी
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