यह कविता एक पिता के मनोभाव को दर्शाती है.... यह मनोभाव तब का होता है जब हम पिता को एक बहुत कठोर चरित्र में देख रहे होते हैं... क्योंकि हमने दुलारते सिर्फ माँ को देखा  होता है.. और हम उनसे दूरी ही महसूस करते हैं।। और एक पिता की ये विवशता कि वो  कह नहीं पाता अपना प्यार।।ये कविता एक पिता की वही अनकही है जो वो जानता भी है कि तुम नहीं जानोगे... 

तुम्हें नहीं याद

रहेंगे मेरे चुम्बन

नहीं याद रहेंगे

तुम्हारी बँधी मुट्ठीयों में,

उंगलियां फंसाता मैं..

नहीं याद रहेगा

तुम्हारी एक छींक पर,

उड़ती मेरी नींद..

तुम भूल जाओगे

मेरे कंधे पर की हुई,

दुनिया की सैर.. 

तुम भूल जाओगे

तुम्हारे गालों पर,

मेरे हाथों का स्पर्श..

भूल जाओगे तुम

तुम्हारे अंदाज़ में, 

मेरा तुतलाना ..

नहीं देख सकोगे तुम, 

एक टक तुम्हें देखना.. 

नहीं देख पाओगे तुम,

बहुत कुछ.. 

जिसमें मैं 

कुछ कुछ तुम्हारी 

माँ जैसा लगता.. 

बेहद कोमल.. 

मैं जानता हूँ

नहीं बन पाऊँगा

तुम्हारी पसंद.. 

एक लम्बे समय तक,

शायद तुम्हारे पिता

बनने तक.. 

क्योंकि मैं मिलूंगा,

तुम्हें धूप में 

जबरन तपाता हुआ..  

दिखूंगा तुम्हें,

पथरीले रास्तों पर 

अकेला छोड़ता हुआ .. 

दिखूंगा तुम्हें,

सहारे के बिना 

चलना सिखाता हुआ.. 

पीड़ा होगी मुझे भी,

लेकिन निखारने का

कोई और तरीका नहीं है...

मुझे प्रतीक्षा रहेगी

जब तुम समझोगे.. 

...मुझे

और..मेरा बहुत कुछ

अनकहा..

- संदीप द्विवेदी 

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