अनकहा |Unsaid |Hindi Love Poem |Kavi Sandeep Dwivedi
पढ़ सकोगी हाल यूँ ही
या मुझे लिखना पड़ेगा
प्रेम पूरित हृदय लोगी
या मुझे बिकना पड़ेगा
ओ प्रिये हर शर्त पर
तुमको सुनाना चाहता हूँ
अनकहा तुम समझ लोगी
या मुझे कहना पड़ेगा..।।
रात की ठंडक मुझे
तीखी दुपहरी लग रही है
सब अँधेरे ने ढका है
एक अंगीठी जल रही है
मैं अकेला बैठकर
तुमको बुलाने सो गया हूँ
देहरी तक आ गयीं तुम
या खड़ा रहना पड़ेगा
अनकहा तुम समझ लोगी
या मुझे कहना पड़ेगा।।
हूँ नहीं ऐसा अकेला
मैं भी लेकिन अड़ गया हूँ
प्रेम की पावन चढ़ाई
मैं शिखर तक चढ़ गया हूँ
लौ जलाए माथ पर
देखो दिए पर जल रहा
बोलो बचा सकती मुझे हो
या मुझे जलना पड़ेगा।।
हों रिझाती बात तो
मेरे पास सौ सौ गीत हैं
मैं हूँ कलम है रात है
बस आपकी तारीफ़ है
पर चाहता हूँ ये कि
तुम शब्दों के फेरे न पड़ो
रहा जो मुझमें अछलका
वो सुनो अच्छा लगेगा।।
या मुझे लिखना पड़ेगा
प्रेम पूरित हृदय लोगी
या मुझे बिकना पड़ेगा
ओ प्रिये हर शर्त पर
तुमको सुनाना चाहता हूँ
अनकहा तुम समझ लोगी
या मुझे कहना पड़ेगा..।।
रात की ठंडक मुझे
तीखी दुपहरी लग रही है
सब अँधेरे ने ढका है
एक अंगीठी जल रही है
मैं अकेला बैठकर
तुमको बुलाने सो गया हूँ
देहरी तक आ गयीं तुम
या खड़ा रहना पड़ेगा
अनकहा तुम समझ लोगी
या मुझे कहना पड़ेगा।।
हूँ नहीं ऐसा अकेला
मैं भी लेकिन अड़ गया हूँ
प्रेम की पावन चढ़ाई
मैं शिखर तक चढ़ गया हूँ
लौ जलाए माथ पर
देखो दिए पर जल रहा
बोलो बचा सकती मुझे हो
या मुझे जलना पड़ेगा।।
हों रिझाती बात तो
मेरे पास सौ सौ गीत हैं
मैं हूँ कलम है रात है
बस आपकी तारीफ़ है
पर चाहता हूँ ये कि
तुम शब्दों के फेरे न पड़ो
रहा जो मुझमें अछलका
वो सुनो अच्छा लगेगा।।
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