महाभारत के इन दो महारथियों की तुलना नहीं.. इनसे सीखना चाहिए ये गुण | Kavi Sandeep Dwivedi
महाभारत के दो चरित्र हमेशा चर्चे में होते हैं
कर्ण और अर्जुन
महाभारत वीरों का जमघट है । योद्धाओं की गाथा है । द्वापर युग की इस कथा ने हमेशा मानव जीवन को नई दिशा देता रहा है ।
... और आज हम महाभारत के इन्हीं दो योद्धाओं के बारे में बात करना चाहूँगा । जिनकी चर्चा में हम बड़ी मुश्किल से एकमत हो पाते हैं । और वो दो योद्धा हैं - कर्ण और अर्जुन
हम सब इसी में उलझे रहते हैं कि इन दोनों योद्धाओं में बड़ा कौन था .. और इसके लिए सबके पास बराबर तर्क हैंअर्जुन को बड़ा मानने वालों के पास अर्जुन के लिए कर्ण को बड़ा मानने वालों के पास कर्ण के लिए ।
लेकिन पहली बात तो ये कि अतीत सीख लेने के लिए होता है .. तुलना के लिए नही होता ।
तुलना में हम बड़ा और छोटा सिद्ध करने में लग जाते हैं ..इसकी जगह यदि अंतर पर चर्चा हो तो बहुत कुछ सीखा जा सकता है
इस पर यह वीडियो भी देखा जा सकता है कर्ण कौन ?
जब अभाव में प्रभाव हो तो वो कर्ण
अर्जुन कौन ?
जब प्रभाव में स्वभाव हो तो वो अर्जुन
दुर्योधन कौन ?
जब स्वभाव में अभाव हो तो वो दुर्योधन
कर्ण
जब अभाव में प्रभाव हो तो वो कर्ण
कर्ण के पास कोई राजपाट नहीं था ..सूत (यह अक्सर राजाओं के सारथी होते हैं..) कुल का ही जाना गया यानि तत्कालीन परिस्थिति के अनुसार कहीं न कहीं सबका अभाव था लेकिन अपने कौशल से उसने राजपाट भी हासिल किया और महाभारत के महारथियों में गिना गया यानि प्रभाव स्थापित किया ।
कर्ण से हम सबको सीखा जाना चाहिए कि कोई परिस्थिति हमें नहीं रोक सकती..यदि हम ठान लें ..चाह लें ।
अर्जुन
जब प्रभाव में स्वभाव हो तो वो अर्जुन
अर्जुन राजकुल से थे। हर वैभव से सम्पन्न थे यानि प्रभाव था लेकिन यह सब होने पर आमतौर पर व्यक्ति आलसी ,दुराचारी हो जाता है यानि कि उसका स्वभाव अलग हो जाता है लेकिन अर्जुन में हमेशा विनम्रता रहा ,सीखने की ललक,सदाचार हमेशा उसमे विद्यमान रहे ।
दुर्योधन
जब स्वभाव में अभाव हो तो वो दुर्योधन
आप सहज अनुमान लगा सकते हैं .. दुर्योधन को क्यों ऐसा कहा गया ।
इस तरह योद्धाओं की आपस में तुलना करना उचित नहीं बल्कि उनकी खूबियों ,कमियों से सीख लेकर हमें आगे बढ़ना चाहिए ।
विश्वास है ये पोस्ट आपके लिए सार्थक रही होगी । इसी तरह जुड़े रहें ।
धन्यवाद
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