Best Hindi Poem | Umra Yahi Kho Jane Ki | Life Changing Poem | Kavi Sandeep Dwivedi
सागर दो टुकड़े करने की
सीपी सेतु बनाने की
उम्र यही खो जाने की।। 2
हारे टूटे मन से भी
रण में धूम मचाने की
योद्धाओं से सजे हुए
चक्रव्यूह में जाने की
उम्र यही खो जाने की।। 2
जग के हित में केशव सा
शान्तिदूत बन जाने की
भरी सभा में दुर्योधन को
डटकर आँख दिखाने की
उम्र यही खो जाने की।।2
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सूरज यहाँ वहां करने की
रातों नींद उड़ाने की
आग उगलती रेतों में
पानी की धार जमाने की
उम्र यही खो जाने की।
पंख बनाकर हाथों को
नौका पार लगाने की
नहीं रहे पकवान अगर तो
सूखी रोटी खाने की
उम्र यही खो जाने की।।2
पथरीले काँटों के पथ से
लक्ष्य ढूंढ़कर लाने की
जैसे भी हो अपनी किस्मत
अपने हाथ बनाने की
उम्र यही खो जाने की।।2
- Sandeep Dwivedi
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