धन्यवाद् आप सबका ..जो यहाँ पर हैं और पूरे गाँव के लोग जहाँ तक मेरी आवाज़ पहुच रही है ..
आपने मुझे गाँव का सरपंच चुना है...मुझे बहुत ख़ुशी है कि अपने इसके लायक समझा..
और धन्यवाद उनका जो इस पद के चुनाव में प्रतिद्वंदी रहे जिन्होंने कभी ये मुझे गुमान नही होने दिया कि अपने गाँव में इस पद के काबिल सिर्फ मैं हु ....
सह्रिदायिक उनका सम्मान करता हूँ ...कभी  भी ये जीतना हारना हमारे रिश्तों  प्यार में असर नही डालना चाहिए ...ठीक उसी तरह जैसे बैच खेलने से पहले दो टीम में होते हैं और खेल होने के बाद सब एक साथ मिलकर प्यार से घर जाते हैं...और ये एक नेतृत्वकर्ता का सबसे खास गुण होता है
मुझे आपके अनुभव,आपके सलाह की हमेशा जरुरत होगी ....
एक सरपञ्च के तौर पर अपने पहले संबोधन में मैं कुछ बातें आपसे कहना चाहूंगा..
बात यहाँ से शुरू करना चाहूँगा..
और आपने इसका नेतृत्व करने की इस गाँव की जिम्मेदारी मुझे सौंपी है...और मैं इस  जिम्मेदारी को सहर्ष स्वीकार करते हुए आपको ये स्पष्ट करना चाहूँगा कि मुझे चुनते हुए आपने भी कुछ जिम्मेदारियां ली हैं हो सकता है नियमो में सिर्फ एक सरपंच की जिम्मेदारी अंकित हो...लेकिन अधिकांश भावनात्मक जिम्मेदारियों के लिए कोई कथन नही हुआ करता..पर वो जिम्मेदारियां महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं...
जहाँ आपने मुझे नेतृत्व करने की जिम्मेदारी सौंपी है वहीँ आपने भी सहयोग की जिम्मेदारी ली है जहाँ एक तरफ मुझे आप सबके विचारों पर उचित निर्णय लेने की जिम्मेदारी है वहीँ आप पर व्यवस्थित और दूरगामी विचार देने की जिम्मेदारी है ..
गाँव का सारा विकास प्रगति मुझसे आंकी जाएगी लेकिन इन सबमे अपरोक्ष रूप से आपका सहयोग ही होगा ..
एक सरपंच सरकार की कड़ी का वो हिस्सा होता है जो उच्च स्तर पर द्वारा लायी गयी योजनाओं को आधार स्तर पर क्रियान्वित करता है ..मतलब कोई भी योजना, नियम तब तक प्रभावी नही हो सकता जब तक उस पर आधार स्तर पर पहल न हो ..
आपकी हर समस्या चाहे वो विकास पर हो शोषण हो मुझसे सीधे कहें ताकि मुझे समझने में आसानी हो ....
कोई भी विकास योजनाबद्ध तरीके से तब तक  नही हो सकता जब तक करप्शन पर लगाम नही लगेगी ..मैं हर उस बिंदु पर सरकार की गोपनीयता को ध्यान में रखते हुए पारदर्शिता रखूंगा जहाँ ऐसी गुंजाईश हो लेकिन मुझे बताएं जहाँ करप्शन घर किया हो मैं शायद देख नही पा रहा....
दुनिया में कोई भी ऐसा फैसला नही हो जिसमे सब एक साथ सहमत हो ..मैं जो भी फैसले लूँगा वो गाँव के हित में बहुमत,विचार विमर्श  और अपनी बुद्धिमत्ता के आधार पर लूँगा लेकिन इसके विरोध की स्थिति में  एक सार्थक बहस का भी स्वागत करता हु...उचित हुआ तो पुनर्विचार भी करूंगा लेकिन दूरगामी फायदों को मैं तवज्जो दूंगा ..
कोई बात कोई फैसला मेरे लिए जातिगत या व्यक्तिगत नही है..इस पद पर खड़े होकर ये भीड़ मुझे एक समान दिखायी देती है एक परिवार दिखाई देता है..
आज हम सब गाँव के विकास की परिभाषा बदल रहे ..
लेकिन हमारा ये एक समय के बाद बहुत बड़ा नुकसान है ...
गाँव के विकास मतलब उसे शहर बनाना नही होता अब तो ऐसी स्थिति है की शहर को लोग गाँव जैसा देखना चाहते हैं पर अब वहां सम्भव नही हो पाता..और विडंबना ये है कि हम गाँव को शहर जैसा ..
गाँव गाँव जैसा होता है...पेड़ पौधे होते हैं खेत खलिहान होते हैं यूँ कहिये की  एक कृषि उद्योग होता है गाँव जहाँ सबके लिए अनाज उगाया जाता है ....अब बताइए खाना और बाकि सब चीजे तो सबको चाहिए न तो क्या आपको नही लगता कि इस उद्योग के लिए जगह भी सबसे ज्यादा चाहिए...और इनके लिए उचित वातावरण भी ...पालतू जानवर पशु पक्षी सब कहाँ जायेंगे..इनके लिए भी तो हमारी जिम्मेदारी है..
मैं ऐसा मानता हु गाँव के विकास का मतलब शिक्षा चिकित्सा सुरक्षा रौशनी  ये सब उपलब्ध कराना है ना कि पेड़ काट कर उसे बंजर करना है हरा भरा रखना है जहा कल को oxigen के लिए मास्क की जरुरत न पड़े...
हमारे गाँव में किसी भी सदस्य का शोषण नही होना चाहिए ..इसलिए गाँव के पदाधिकारियों से अनुरोध और इस पद से आदेश है की वो अपना काम निष्ठां और ईमानदारी से करें ...मुझे उन अधिकारों को इस्तेमाल करने की आवश्यकता नही होगी जो मैं उनके खिलाफ कर सकता हूँ ...
आप मेरे काम पर नजर रखने क लिए और सलाह्ह के लिए पूरी तरह स्वतंत्र हैं और मैं पांच साल तक हूँ ..तब तक सरकार द्वारा निर्देशित गोपनीयता को ध्यान में रखते हुए अपनी हर सभा भाषणों में अपने क्रियाकलापों का ब्यौरा देता रहूँगा ...आपके प्रश्नों का जवाब देता रहूँगा...अच्छा मौका होगा जब मैं अपनी बात भी एक साथ सबके सामने रख सकूंगा...
मैं एक सरपंच के अधिकारों के दायरे से तो बाहर नही जा सकता लेकिन अगर कोई ऐसी बात होती है तो एक आम नागरिक के तौर पर आपकी बात सही जगह पर पहुँचाने की कोशिश करूंगा ..
मेरी कोशिश रहेगी कि हमारे गाँव की हुनर उपलब्धियां ,  या जो भी बेहतर हो उसे गाँव से निकालकर देश दुनिया के सामने लाऊं और उसे प्रोत्साहित करूँ ..
मैं इन बच्चों को देख रहा हूँ..
और ये जो बच्चे हैं इन्हें नही पता की ये हमसे क्या चाहते हैं  पर हम सबको पता  है कि इनके बेहतर भविष्य के लिए क्या चाहिए...
एक संपन्न सभ्यता का वातावरण..सीखने का वातावरण जो इनका एक बेह्त्र्र भविष्य बनाएगी .... ये किसी एक की जिम्मेदारी नही है हम सबकी मिलकर ये वातावरण तैयार करना होगा..ये अकेले नही किया जा सकता..
मेरा हमेशा एक निजी सपना रहा है कि गाँव में एक पुस्तकालय हो ढेर सारी किताबों का संग्रह हो तो इसके लिए कुछ करें...यदि सरकार सपोर्ट ना भी कर पाए तो सब मिलकर क्यों न इस पर काम करें और फिर जरुर सरकार भी हमारे साथ जरुर हो जाएगी और एक नियम से सबको अच्छे साहित्य पढने को मिले ..
साहित्यों को पढने का अवसर निकालिए यही एक समाज का निर्माण करती हैं..
अपनी संस्कृति हो बचा कर रखिये..मेरे गाँव की युवा पीढ़ी खूब प्रगति करे लेकिन अपनी संस्कृति का ध्यान रखे संस्कारों को समझे..
ज्यादा समय नही लूंगा .....आखिर में एक बात और कहना चाहूँगा   इस पद पर आपका नेतृत्व करने के लिए वही आता या आ सकता है जिसे आप अपने वोटों से चुनते हैं...जैसे आज मैं हूँ...इसके लिए हमेशा जागरूक रहें..
वोट सिर्फ उसे जो सिर्फ आपकी या सिर्फ अपनी नही बल्कि पूरे गाँव को लेकर चलने का भाव रखे..
एक बार फिर धन्यवाद आपने मुझे चुना..
बच्चे बहुत बोर हो गये..है कि नही..मैं भी हो जाता था जब तुम्हारी तरह था ...कोई नही अभी लड्डू फुर्ती आ जाएगी..हा हा हा ..
जय हिन्द..
written by Kavi Sandeep Dwivedi

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