Yahi Samay Hai Dhiraj Dharna |best motivational poem by kavi sandeep dwivedi
नई सुबह की प्रथम शाम है
मन तेरा घबराएगा
चिंता तुम्हें डुबाएगी
साहस भी हाथ छुड़ाएगा
यही समय है धीरज धरना
सूरज आने वाला है
रात के घेरे छंटने है
उजियारा छाने वाला है।
आंच तुम्हारे अंगों को
झुलसाती और तपाती है
मुश्किल होती सहने में
सांस उलझती जाती है।
यही समय है धीरज धरना
तू कुंदन होने वाला है
रात के घेरे छंटने है
उजियारा छाने वाला है।
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अंतर्मन में उठाया दवंद
राह कई दिखलाएगा
खड़ा हुआ असमंजस में
राह कौन सुलझाएगा
समय है धीरज धरना
केशव आने वाला है
रात के घेरे छंटने है
उजियारा छाने वाला है।
सारी दुनिया आगे
होगी
तू खुद को पीछे पाएगा
एक दृश्य ऐसा भी
एक दिन
तेरे सम्मुख आएगा।
यही समय है धीरज धरना
समय बदलने वाला है
रात के घेरे छंटने है
उजियारा छाने वाला है।
नहीं कोसना मेहनत
अपनी
नहीं कोसना भाग्य
कभी
नई कोसना दुनिया
को भी
नहीं कोसना खुद को
भी
जैसे भी हो धीरज धरना
सब जुड़कर मिलने वाला है
रात के घेरे छंटने है
उजियारा छाने वाला है।
- संदीप द्विवेदी
1 Comments
Love this poem♥️
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