नई सुबह की प्रथम शाम है

मन तेरा घबराएगा

चिंता तुम्हें डुबाएगी

साहस भी हाथ छुड़ाएगा

यही समय है धीरज धरना

सूरज आने वाला है

रात के घेरे छंटने है

उजियारा छाने वाला है।

 

आंच तुम्हारे अंगों को

झुलसाती और तपाती है

मुश्किल होती सहने में

सांस उलझती जाती है।

यही समय है धीरज धरना

तू कुंदन होने वाला है

रात के घेरे छंटने है

उजियारा छाने वाला है।

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अंतर्मन में उठाया दवंद

राह कई दिखलाएगा

खड़ा हुआ असमंजस में

राह कौन सुलझाएगा

समय है धीरज धरना

केशव आने वाला है

रात के घेरे छंटने है

उजियारा छाने वाला है।


सारी दुनिया आगे होगी

तू खुद को पीछे पाएगा

एक दृश्य ऐसा भी एक दिन

तेरे सम्मुख आएगा।

यही समय है धीरज धरना

समय बदलने वाला है

रात के घेरे छंटने है

उजियारा छाने वाला है।

 

नहीं कोसना मेहनत अपनी

नहीं कोसना भाग्य कभी

नई कोसना दुनिया को भी

नहीं कोसना खुद को भी

जैसे भी हो धीरज धरना

सब जुड़कर मिलने वाला है

रात के घेरे छंटने है

उजियारा छाने वाला है।

                                  - संदीप द्विवेदी 

 

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